शीशा और रिश्ता दोनों नाज़ुक होते हैं। शीशा गलती से टूट जाता है और रिश्ते गलतफहमी से टूट जाते हैं।
*आज से हम..* जिस भी रिश्ते में गलतफहमियां हों उन्हें जल्दी से जल्दी दूर करें
Both glass and relationships are fragile. Glass breaks by mistake and relationships break because of misunderstandings.
*TODAY ONWORDS LET'S*.. clear up misunderstandings in relationships as quickly as possible.
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INSPIRATIONAL STORIES
*!! गांव वाला और चश्मा !!*
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एक ग्रामीण था। वह अनपढ़ था। वह पढ़ना-लिखना नहीं जानता था। उन्होंने अक्सर लोगों को किताबें या पेपर पढ़ने के लिए चश्मा पहना हुआ देखा था। उसने सोचा, “अगर मेरे पास चश्मा हो, तो मैं भी इन लोगों की तरह पढ़ सकता हूँ। मुझे शहर जाना चाहिए और अपने लिए एक जोड़ी चश्मा खरीदना चाहिए।” इसलिए एक दिन वह एक शहर में गया। एक चश्मे की दुकान में पहुंचा। उसने दुकानदार से एक जोड़ी चश्मा दिखाने के लिए कहा। दुकानदार ने उन्हें कई जोड़े चश्मे और एक किताब दी।
ग्रामीण ने एक-एक कर सभी चश्मों को आजमाया। लेकिन वह कुछ पढ़ नहीं सका। उसने दुकानदार से कहा कि– ये सब चश्में तो बेकार हैं। दुकानदार ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा। फिर उसने किताब की तरफ देखा। वह उल्टी थी! दुकानदार ने कहा, “शायद आप नहीं जानते कि कैसे पढ़ना है।” ग्रामीण ने कहा, “नहीं, मैं नहीं जानता। मैं चश्मा खरीदना चाहता हूं ताकि मैं दूसरों की तरह पढ़ सकूं। लेकिन ये सभी चश्में तो बकवास हैं।”
दुकानदार ने हंसी आ गयी. उसने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी. अब उसको अनपढ़ ग्राहक की असली समस्या समझ आ गई थी। उसने गाँव वाले को समझाया, “मेरे प्यारे दोस्त, तुम बहुत अनजान हो। चश्मा पढ़ने या लिखने में मदद नहीं करते हैं। वे केवल आपको ठीक से देखने में मदद करते हैं। सबसे पहले, आपको पढ़ना और लिखना सीखना चाहिए।”
*शिक्षा:-*
अज्ञानता अंधापन है।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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एक ग्रामीण था। वह अनपढ़ था। वह पढ़ना-लिखना नहीं जानता था। उन्होंने अक्सर लोगों को किताबें या पेपर पढ़ने के लिए चश्मा पहना हुआ देखा था। उसने सोचा, “अगर मेरे पास चश्मा हो, तो मैं भी इन लोगों की तरह पढ़ सकता हूँ। मुझे शहर जाना चाहिए और अपने लिए एक जोड़ी चश्मा खरीदना चाहिए।” इसलिए एक दिन वह एक शहर में गया। एक चश्मे की दुकान में पहुंचा। उसने दुकानदार से एक जोड़ी चश्मा दिखाने के लिए कहा। दुकानदार ने उन्हें कई जोड़े चश्मे और एक किताब दी।
ग्रामीण ने एक-एक कर सभी चश्मों को आजमाया। लेकिन वह कुछ पढ़ नहीं सका। उसने दुकानदार से कहा कि– ये सब चश्में तो बेकार हैं। दुकानदार ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरा। फिर उसने किताब की तरफ देखा। वह उल्टी थी! दुकानदार ने कहा, “शायद आप नहीं जानते कि कैसे पढ़ना है।” ग्रामीण ने कहा, “नहीं, मैं नहीं जानता। मैं चश्मा खरीदना चाहता हूं ताकि मैं दूसरों की तरह पढ़ सकूं। लेकिन ये सभी चश्में तो बकवास हैं।”
दुकानदार ने हंसी आ गयी. उसने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी. अब उसको अनपढ़ ग्राहक की असली समस्या समझ आ गई थी। उसने गाँव वाले को समझाया, “मेरे प्यारे दोस्त, तुम बहुत अनजान हो। चश्मा पढ़ने या लिखने में मदद नहीं करते हैं। वे केवल आपको ठीक से देखने में मदद करते हैं। सबसे पहले, आपको पढ़ना और लिखना सीखना चाहिए।”
*शिक्षा:-*
अज्ञानता अंधापन है।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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*👇👇 प्रेरक प्रसंग 👇👇*
*!! संस्कार !!*
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एक राजा की घोड़ी का एक काना बच्चा था, बच्चे ने मां से इसका कारण पूछा तो घोड़ी बोली, मैं गर्भवती थी, राजा ने मुझे कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।
बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और बोला, मैं बदला लूंगा।
मां ने कहा, राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है, सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है। मगर बच्चे ने राजा से बदला लेने की ठान ली।
एक दिन राजा उसे युद्ध पर ले गया, जहाँ राजा घायल हो गया।
घोड़े के पास राजा को युद्ध में छोड़कर भागने का मौका था, मगर घोड़े के मन में ऐसा कोई ख्याल नहीं आया और वह राजा को उठाकर महल ले आया।
घोड़े ने मां से पूछा, युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया, ऐसा क्यों?
घोड़ी बोली, तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, तुझसे नमकहरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है। मेरे संस्कार और सीख को तू कैसे झुठला सकता था।
*शिक्षा:-*
ऐसे ही जो मां बाप सत्संगी होते हैं और भजन सिमरन करते हैं तो उनकी भक्ति के संस्कार उनके बच्चों को भी मिलते हैं। अगर बच्चों को भक्ति पथ पर लाना हो तो पहले मां बाप को खुद भक्ति करनी चाहिए।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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*👇👇प्रेरक प्रसंग 👇👇*
*!! नमक का स्वाद !!*
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एक बार एक परेशान और निराश व्यक्ति अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला– “गुरूजी मैं जिंदगी से बहुत परेशान हूँ। मेरी जिंदगी में परेशानियों और तनाव के सिवाय कुछ भी नहीं है। कृपया मुझे सही राह दिखाइये।”
गुरु ने एक गिलास में पानी भरा और उसमें मुट्ठी भर नमक डाल दिया। फिर गुरु ने उस व्यक्ति से पानी पीने को कहा। उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया।
गुरु– इस पानी का स्वाद कैसा है ? “बहुत ही ख़राब है” उस व्यक्ति ने कहा। फिर गुरु उस व्यक्ति को पास के तालाब के पास ले गए। गुरु ने उस तालाब में भी मुठ्ठी भर नमक डाल दिया फिर उस व्यक्ति से कहा– इस तालाब का पानी पीकर बताओ की कैसा है। उस व्यक्ति ने तालाब का पानी पिया और बोला– गुरूजी यह तो बहुत ही मीठा है।
गुरु ने कहा– “बेटा जीवन के दुःख भी इस मुठ्ठी भर नमक के समान ही है। जीवन में दुखों की मात्रा वही रहती है– न ज्यादा न कम। लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हम दुखों का कितना स्वाद लेते हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी सोच एवं ज्ञान को गिलास की तरह सीमित रखकर रोज खारा पानी पीते हैं या फिर तालाब की तरह बनकर मीठा पानी पीते हैं।”
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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*👇👇 प्रेरक प्रसंग 👇👇*
*!! शीशे का कमरा !!*
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एक व्यक्ति ने अपने गुरु से पूछा- मेरे कर्मचारी, मेरी पत्नी, मेरे बच्चे और सभी लोग मतलबी है। कोई भी सही नहीं है, क्या करूं?
गुरु थोड़ा मुस्कुराये और उसे एक प्रसंग सुनाई।
एक गाँव में एक विशेष कमरा था जिसमें १००० शीशे लगे थे। एक छोटी लड़की उस कमरे में गई और खेलने लगी। उसने देखा १००० बच्चे उसके साथ खेल रहे हैं और वो उन प्रतिबिम्ब बच्चों के साथ खुश रहने लगी। जैसे ही वो अपने हाथ से ताली बजाती सभी बच्चे उसके साथ ताली बजाते। उसने सोचा यह दुनिया की सबसे अच्छी जगह है और यहां बार-बार आना चाहेगी।
थोड़ी देर बाद इसी जगह पर एक उदास आदमी कहीं से आया। उसने अपने चारों तरफ हजारों दु:ख से भरे चेहरे देखे। वह बहुत दु:खी हुआ। उसने हाथ उठा कर सभी को धक्का लगाकर हटाना चाहा तो उसने देखा हजारों हाथ उसे धक्का मार रहे हैं।उसने कहा यह दुनिया की सबसे खराब जगह है, वह यहां दोबारा कभी नहीं आएगा और उसने वो जगह छोड़़ दी।
*शिक्षा:-*
इसी तरह यह दुनिया एक कमरा है, जिसमें हजारों शीशे लगे हैं। जो कुछ भी हमारे अंदर भरा होता है वो ही प्रकृति हमें लौटा देती है।
अपने मन और दिल को साफ़ रखें, तब यह दुनिया आपके लिए स्वर्ग के समान है।
*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*
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जीवन का एक रहस्य...
रास्ते पर गति की सीमा है, बैंक में पैसों की सीमा है, परीक्षा में समय की सीमा है परंतु हमारी सोच की कोई सीमा नहीं है। इसलिए सदा श्रेष्ठ सोचें और श्रेष्ठ पाएं।
*आज से हम* अपनी सोच को सकारात्मक और शक्तिशाली बनाएं...
A secret of life....
Road has speed limit, bank has money limit, exam has time limit but thinking has no limit. So think big and achieve big !
*TODAY ONWARDS LET'S* make our thoughts positive and powerful...
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Faith and hope alone determine your present and future.
*👉TODAY ONWARDS LET'S* keep strengthening our faith and hope...........
POEM FROM MONIKA GUPTA
अगर मेहनत आदत बन जाए
तो कामयाबी 'मुकद्दर' बन जाती है।
मंजिलें भी जिद्दी हैं .
रास्ते भी जिद्दी हैं,
देखते है कल क्या होगा,
हौसले भी तो जिद्दी हैं ।
आज रांस्ता बना लिया है,
तो कल मंजिल भी मिल जाएगी ॥
हौसलों से भरी यह कोशिश एक दिन
जरूर रंग लाएगी !!
उड़ान तो भरना है।
चाहे कई बार गिरना पड़े
सपनों को पूरा करना है
चाहे खुद से भी लड़ना पड़े
तो कामयाबी 'मुकद्दर' बन जाती है।
मंजिलें भी जिद्दी हैं .
रास्ते भी जिद्दी हैं,
देखते है कल क्या होगा,
हौसले भी तो जिद्दी हैं ।
आज रांस्ता बना लिया है,
तो कल मंजिल भी मिल जाएगी ॥
हौसलों से भरी यह कोशिश एक दिन
जरूर रंग लाएगी !!
उड़ान तो भरना है।
चाहे कई बार गिरना पड़े
सपनों को पूरा करना है
चाहे खुद से भी लड़ना पड़े
POEM OF SUCESS
जिंदगी में बदलते नए रंग है सबने देखे ,
धीरज धरिए क्यों कि
यहां पर आप अकेले नही रोए।
रोना मत।
अगर मंजिल तक पहोच नही पाए।
क्योंकि...
अपंग है कुछ लोग जो
चलना शुरू तक नही कर पाए।
डरना मत
अगर पैसे साथ नही रहे,
क्यों कि पैसो से आज तक कोई प्यार खरीद नही पाया।
लालच के इस चक्र में आप अकेले नही फसे।
कुछ लोग तो इस लालच में
अपने बचपन को खो चुके।
हाँ ! जानता हूं आज उछल रहे है
दुःख के अनमोल लहरें।
फिर भी खुश रहो क्यों कि
आज कम से कम आपने पेट भरके खाना खाया होगा।
चिंता मत कीजिए
धीरज धरिए क्यों कि
यहां पर आप अकेले नही रोए।
रोना मत।
अगर मंजिल तक पहोच नही पाए।
क्योंकि...
अपंग है कुछ लोग जो
चलना शुरू तक नही कर पाए।
डरना मत
अगर पैसे साथ नही रहे,
क्यों कि पैसो से आज तक कोई प्यार खरीद नही पाया।
लालच के इस चक्र में आप अकेले नही फसे।
कुछ लोग तो इस लालच में
अपने बचपन को खो चुके।
हाँ ! जानता हूं आज उछल रहे है
दुःख के अनमोल लहरें।
फिर भी खुश रहो क्यों कि
आज कम से कम आपने पेट भरके खाना खाया होगा।
चिंता मत कीजिए
Poem for sucess by Monika Gupta
मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर
भर कर जेबों में आशाएँ
दिल में है अरमान यहीं
कुछ कर जाएँ कुछ कर जाएँ।
सूरज सा तेज नहीं मुझमें
दीपक सा जलता देखोगे
आपनी हद रौशन करने से
तुम मुझको कब तक रोकोगे।
मैं उस उस माटी का वृक्ष नहीं
जिसको नदियों ने सीचा है,
बंजर माटी में पलकर मैंने
मृत्यु से जीवन खीचा है।
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ
शीशे से कब तक तोड़ोगे
मिटने वाला मैं नाम नहीं
तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे।
इस जग में जितने जुल्म नहीं
उतने सहने की ताकत है
तानों के शोर में भी रहकर
सच कहने की आदत है।
मैं सागर से भी गहरा हूँ
तुम कितने कंकड़ फेकोगे
चुन चुन कर आगे बढूंगा मैं
तुम मुझको कब तक रोकोगे।
झुक झुक कर सीधा खड़ा हुआ,
अब फिर झुकने का शौक नहीं
अपने ही हाथों रचा स्वयं
तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं।
तुम हालातों की भठ्ठी में
जब जब मुझको झोकोगे
तब तप कर सोना बनूँगा
तुम मुझको कब तक रोकोगे
भर कर जेबों में आशाएँ
दिल में है अरमान यहीं
कुछ कर जाएँ कुछ कर जाएँ।
सूरज सा तेज नहीं मुझमें
दीपक सा जलता देखोगे
आपनी हद रौशन करने से
तुम मुझको कब तक रोकोगे।
मैं उस उस माटी का वृक्ष नहीं
जिसको नदियों ने सीचा है,
बंजर माटी में पलकर मैंने
मृत्यु से जीवन खीचा है।
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ
शीशे से कब तक तोड़ोगे
मिटने वाला मैं नाम नहीं
तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे।
इस जग में जितने जुल्म नहीं
उतने सहने की ताकत है
तानों के शोर में भी रहकर
सच कहने की आदत है।
मैं सागर से भी गहरा हूँ
तुम कितने कंकड़ फेकोगे
चुन चुन कर आगे बढूंगा मैं
तुम मुझको कब तक रोकोगे।
झुक झुक कर सीधा खड़ा हुआ,
अब फिर झुकने का शौक नहीं
अपने ही हाथों रचा स्वयं
तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं।
तुम हालातों की भठ्ठी में
जब जब मुझको झोकोगे
तब तप कर सोना बनूँगा
तुम मुझको कब तक रोकोगे